संक्षिप्त पार्श्वचित्र
शिवकालीबोध प्रक्रिया-संचालित है, न कि व्यक्ति-चालित। भाईगुरु इस सत्य का प्रचार करते हैं कि सर्वोपरी दिव्य शक्ति, शिवशक्ति ही हमारी परम गुरु हैं। परम देवत्व के गुणों के जागरण और प्रकटीकरण के साथ, हमारा गुरु तत्त्व सक्रिय हो जाता है। हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए, यह आवश्यक है कि हम स्वयं अपने गुरु बनें।
इसलिए, शिवकालीबोध में ऐसे कोई व्यक्ति नहीं है जो अन्य सभी से `विशेष' हो। आध्यात्मिक रूप से विकसित सभी प्रतिपालक हैं, जो आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग पर दूसरों की सहायता और मार्गदर्शन करते हैं। अतः भाईगुरु को भी यह पसंद हैं की सब उन्हें प्रतिपालक के रूप में ही स्वीकार करें। उनका दृढ़ विश्वास है कि हमारी भक्ति और पूर्ण समर्पण केवल परमात्मा के प्रति होना चाहिए, न कि किसी मनुष्य के लिए। उनके अनुसार हम सभी अपने आध्यात्मिक विकास के विभिन्न चरणों में हैं, और कोई भी व्यक्ति इस जीवनकाल में ईश्वर अवतार नहीं बन सकता। इसलिए, हम सदा भक्त ही रहें, और अपने जीवन के उधार के लिए, प्रेम, सहनशीलता और सहिष्णुता के साथ एक दुसरे का हाथ पकड़ कर अपनी आध्यात्मिक यात्रा एक साथ करें। इसीलिए शिवकालीबोध प्रतिपालक-आधारित प्रणाली है जहाँ सभी एक समान हैं क्योंकि सभी एक ही ईश्वरीय शक्ति के प्रतिबिंब हैं।
इसलिए, शिवकालीबोध में ऐसे कोई व्यक्ति नहीं है जो अन्य सभी से `विशेष' हो। आध्यात्मिक रूप से विकसित सभी प्रतिपालक हैं, जो आध्यात्मिक उत्थान के मार्ग पर दूसरों की सहायता और मार्गदर्शन करते हैं। अतः भाईगुरु को भी यह पसंद हैं की सब उन्हें प्रतिपालक के रूप में ही स्वीकार करें। उनका दृढ़ विश्वास है कि हमारी भक्ति और पूर्ण समर्पण केवल परमात्मा के प्रति होना चाहिए, न कि किसी मनुष्य के लिए। उनके अनुसार हम सभी अपने आध्यात्मिक विकास के विभिन्न चरणों में हैं, और कोई भी व्यक्ति इस जीवनकाल में ईश्वर अवतार नहीं बन सकता। इसलिए, हम सदा भक्त ही रहें, और अपने जीवन के उधार के लिए, प्रेम, सहनशीलता और सहिष्णुता के साथ एक दुसरे का हाथ पकड़ कर अपनी आध्यात्मिक यात्रा एक साथ करें। इसीलिए शिवकालीबोध प्रतिपालक-आधारित प्रणाली है जहाँ सभी एक समान हैं क्योंकि सभी एक ही ईश्वरीय शक्ति के प्रतिबिंब हैं।