हमारी चेतना हमारी सच्ची गुरु है, क्योंकि वे हमें सही और गलत हमेशा बताती रहती हैं और हमारा मार्गदर्शन करती हैं। इस प्रकार से गुरु की शक्ति हमारे भीतर ही है, परन्तु हम गुरु को हर समय बाहर खोजते रहते हैं। यदि हम अपने गुरु तत्त्व को जागृत कर लें, तो हम अपने ही आध्यात्मिक गुरु बन सकते हैं। इसलिए, हमारा आध्यात्मिक विकास ऐसा होना चाहिए कि अंततः हम स्वयं के गुरु बन जाएं। चूँकि हमारी चेतना सर्वोपरि ईश्वरीय शक्ति का अंश ही है, इस कारण हमारे परम गुरु अन्य कोई नहीं बल्कि शिवशक्ति ही हैं।

हमारी कुण्डलिनी शक्ति की जागृति और इसके फलस्वरूप हमारे आध्यात्मिक उत्थान से ही हमारे गुरु तत्त्व की जागृति संभव है। इसके लिए, हमें ऐसी आध्यात्मिक पद्धति को सीखकर उसका अभ्यास करना हैं, जो सत्य पर आधारित हो। हमारी कुण्डलिनी की जागृति एवं ईश्वर संग एकीकरण से, हमारी आंतरिक चेतना अति सक्रिय हो जाती है और हम इसे सुनने की संवेदनशीलता प्राप्त करते हैं। हमारी चेतना हमारी निरंतर मार्गदर्शक और रक्षक बन जाती है। यह हमारी सहायता करती हैं कि हम आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करते हुए, जीवन के भोगों का आनंद ले सकें।

अगर हम डर और लगाव में जकड़े रहेंगे, तो हम अपने विचारों और आचरण में स्वतंत्रता धारण नहीं कर पाएंगे। स्वयं के गुरु बनकर, हम अपने आध्यात्मिक सशक्तिकरण से इस जीवन काल में ही मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। हमें यह स्पष्ट रूप से समझाना चाहिए कि आध्यात्मिक गुरु हमारी चेतना को जगाने के लिए मार्गदर्शक हैं। वे हमारे आध्यात्मिक यात्रा के अंतिम लक्ष नहीं हो सकते।

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