भाईगुरु की आध्यात्मिक यात्रा मई 1993 में शुरू हुई, जब इन्होंने सहज योग नामक संस्था में शामिल हुए और माता निर्मला देवी के भक्त बने। सहज योग प्रणाली का नौ साल तक अनुसरण करने के पश्चात्, भाईगुरु को अनुभव हुआ कि उनकी अधात्यमिक प्रगति गतिहीन हो गयी, और उनका आधात्मिक विकास आगे बरना बंद हो गया था। इसलिए, इन्होंने सहज योग को छोड़ने का निर्णय लिया, और जुलाई 2002 में, इन्होंने श्री बाबाजी से दीक्षा लेकर, दूसरी आध्यात्मिक प्रणाली को अपनाया है। आध्यात्मिक भ्रमण के इस चरण में, इन्होंने आदिशक्ति माँ काली की शक्ति को अनुभव किया, और इनके भीतर ईश्वरीय प्रेम की जाग्रति हुई। इनके जीवन में बहुत सारे सकारात्मक बदलाव आए, और इन परिवर्तनों को उनके साथ जुड़े लोगों ने भी देखा।

धीरे-धीरे, आदिशक्ति माँ काली और महादेव शिव के प्रेम की शक्ति को प्रसारित की इच्छा, इनके भीतर बहुत तीव्र हो गई। परन्तु, इन्हें सही मार्ग नहीं मिल रहा था जिसके माध्यम से वे, परम दिव्य शक्ति की भव्यता, सबके साथ साझा कर सकें। आखिरकार, 7 मार्च 2017 को, इन्होंने श्री बाबाजी को छोड़ दिया, और माँ काली के ध्यान में लीन हो, प्रार्थना करने लगे कि इश्वरिये एकीकरण की परम पद्धति उन्हें प्रदान करें। फलतः 10 अप्रैल 2017 की पूर्णिमा के शुभ दिन, इन्हें आशीर्वाद में शिवकालीबोध की प्राप्ति हुई। दिव्य माँ ने परम दिव्य शक्ति, शिवशक्ति को अपने भीतर जागृत करने के लिए आध्यात्मिक प्रणाली, इन्हें उपहार में प्रदान की। यह प्राप्ति भाईगुरु की 25 वर्षों से, परमेश्वरी आदिशक्ति माँ काली और परमेश्वर महादेव शिव को समर्पित पूजा की, चरमबिन्दु थी।

सर्वप्रथम, इन्होंने शिवकलीबोध पद्धति को, 9 जुलाई 2017 की गुरु पूर्णिमा को, कुछ शिवभक्तों को सिखाई। शाम के समय, कुछ भक्तों ने एक साथ मिल कर दिव्य माँ की पूजा अर्पण की और हवन भी किया, और अति उदार और प्रेममय माँ काली और महादेव शिव को परम गुरु और सर्वोच्च ईश्वरीय शक्ति के रूप में स्वीकार किया। यह दिन इनकी आध्यात्मिक यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण और अर्थपूर्ण दिन था क्योंकि यह शुरुआत थी सारी मानवजाति में ईश्वरीय प्रेम और दिव्य गुणों की जाग्रति और अभिव्यक्ति की।


शिवकालीबोध की साधना से, भक्तों को आत्मा-साक्षात्कार की प्राप्ति होती है, और उनकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है। उनका ईश्वर संग एकीकरण स्थापित होता है, जिससे वे अपने आध्यात्मिक सशक्तीकरण की ओर अग्रसर होते हैं। परिणामस्वरूप, भक्तों को संतोष, आनंद, आनंदोल्लास और शांति की प्राप्त होती है। उनकी समस्याओं का समाधान होने लगता है, और बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। सभी अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ समय का अनुभव करते हैं।


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