समय के साथ, हम जीवन के हर क्षेत्र में विकसित होते हैं। स्कूल के बाद, हम उच्च शिक्षा के लिए जाते हैं, और फिर व्यवसायिक योग्यता के साथ ग्रेजुएट होते हैं। कार्यक्षेत्र में, हम अप्रवीण रूप से काम शुरू करते हैं और अनुभव के साथ उस काम के विशेषज्ञ बन जाते हैं। खेल और अन्य क्षेत्रों में भी, अभ्यास के साथ हमारी विशेषज्ञता बढ़ती जाती है।

परन्तु हम यह नहीं सोचते कि समय साथ हमारा आध्यात्मिक विकास भी होना चाहिए। हम अपने बड़ों से कुछ बुनियादी संस्कार और प्रक्रियाएँ सीखते हैं और दशकों तक वैसा ही करते रहते हैं, बिना अपने जीवन में उनके प्रभाव का मूल्यांकन किए हुए। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि आध्यात्मिकता हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि इससे हमारे जीवन की सभी सांसारिक उपलब्धियों की अपेक्षा, अधिक खुशी और समृद्धि आ सकती है।

हमारे आध्यात्मिक उत्थान के चरण:
मानव जन्म का सर्वोच्च उद्देश्य ईश्वर संग एकीकरण प्राप्त करना है। यही हमारा प्रबोधन, असली स्वतंत्रता और मोक्ष है। अपने आध्यात्मिक विकास के दौरान, हम निम्नलिखित चरणों से गुजरते हैं:
1. भक्ति (भक्ति) और दिव्य ज्ञान (ज्ञान) हमारे भीतर जागृत होते हैं।
2. भक्ति और ईश्वरीय ज्ञान हमारे भीतर जागृत होते हैं। हम अनुशासन, प्रसन्नता और आत्मसमर्पण के साथ निर्धारित आध्यात्मिक प्रक्रियाएं (यज्ञकर्म) करने लगते हैं।
3. हमें सर्वोपरि ईश्वर ऊर्जा, शिवशक्ति की अनुभूति होती है। हमारे भीतर, भिन्न-भिन्न दिव्य रूपों में एक ही ईश्वर को देखने का विवेक जागृत होता है और हम अपने भीतर परमेश्वर की उपस्थिति अनुभव करने लगते हैं।
4. हमारे सूक्ष्म शरीर की उर्जा का शुद्धिकरण होता है और वे संतुलित हो जाती हैं।
5. शीघ्र ही, आदिशक्ति माँ काली की कृपा से, हमारी माँ कुण्डलिनी जागृत हो जाती हैं। वे, माँ गौरी रूप में, हमारी आंतरिक शक्ति हैं। कुण्डलिनी जागृत होते ही, हमारे सभी चक्रों का भेदन करती हैं और हमारे सहस्रार की ओर उठती है। वे सभी चक्रों और नाड़ियों का शुद्धिकरण कर, उन्हें सक्रिय करती है। वे हमारे गुरु तत्त्व को भी जागृत करती हैं, जो हमारी आंतरिक चेतना है। हमारी दिव्य आभा की ऊर्जा को भी वे बढ़ा देती है।
6. ईश्वरीय प्रेम और गुण हमारे भीतर जागृत होते हैं और हम उन्हें अपने विचारों, व्यवहार और कार्यों में अभिव्यक्त करने लगते हैं।
7. जब कुण्डलिनी हमारे सहस्रार का भेदन करती हैं, तो वे सर्वव्यापी ईश्वरीय चैतन्य संग हमें एकीकरण प्रदान करती हैं।
8. ईश्वर संग हमारा एकीकरण स्थापित होना ही प्रबोधन, आत्मबोध, मुक्ति, मोक्ष, निर्वाण और आध्यात्मिक सशक्तिकरण है।

हमारे आध्यात्मिक उत्थान की यात्रा बहुत सुखद और आनंदमय हो सकती है, अगर हम अपने परम लक्ष्य की प्राप्ति को लेकर अत्यंत गंभीर न हो जाएं। अपनी आध्यात्मिक यात्रा में हमें अपने अहंकार के जाल से बचकर रहना चाहिए। निश्चित ही, महादेव शिव और माँ काली की कृपा से, हम अपने परम लक्ष्य प्राप्त कर ही लेंगे, जो हैं ईश्वर संग एकीकरण , प्रबोधन, एवं मोक्ष।

अपनी आध्यात्मिक यात्रा की दौरान, हम अच्छा स्वास्थ्य, सुख, आमोद, परमानन्द, शांति और जीवन की सभी अच्छी चीजों को प्राप्त करेंगे। हमारे प्रबोधन के साथ, हमारे जीवन में एक नया आयाम खुल जायेगा। हमारे आध्यात्मिक प्रबोधन से अधिक सुंदर और संतोषप्रद कुछ भी नहीं है। सभी सिद्धियों में यह सबसे बड़ी है, और इसे केवल अति सौभाग्यशाली लोग ही प्राप्त कर सकते हैं।

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