शिवकालीबोध में, हमारे भीतर ईश्वरीय प्रेम की शक्ति की जागृति हमारे आध्यात्मिक विकास का एक आवश्यक अंग है। ईश्वरीय प्रेम का महत्त्व व उसकी अभिव्यक्ति से हमारे जीवन में आने वाले बदलाव को समझना अति आवश्यक है। यह इस प्रकार है:

हम सब प्यार खोजते हैं। किसी से प्यार करने और प्यार मिलने से अधिक खूबसूरत अन्य कोई अनुभूति नहीं है। हम अपने माता-पिता से प्यार का मूल्य सीखते हैं, और समय के साथ हम अपने परिवार एवं दोस्तों से प्यार करने लगते है। और जब कुछ विशेष लोग हमारे जीवन में आते हैं तो हम उनसे भी प्यार करने लगते हैं।

कभी-कभी जीवन की वास्तविकता हमारे सामने आती है और हमारा दिल तोड़ देती है। जिन लोगों से हम प्यार करते हैं वे हमें दुख देते हैं, हमें अनदेखा करते हैंया हमें छोड़ देते हैं। कुछ अस्थायी रूप से चले जाते हैं और कुछ हमेशा के लिए। कुछ हमारी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते, कुछ को कोई दूसरा मिल जाता है, कुछ हमें धोखा देते हैं, कुछ हमसे असभ्य व्यवहार करते हैं, कुछ हमारा सम्मान नहीं करते, कुछ अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहते हैं, और कुछ हमें उतनी गहराई से प्यार नहीं करते जितना हम करते हैं। अतः प्यार इतनी जटिल भावना है कि कभी-कभी यह विचार हमारे दिमाग में आता है कि, क्या सच्चा प्यार होता भी है।

इसकी लिए हम पहले यह समझे क़ि मानवीय प्रेम सीमित है, क्योंकि यह हमारी अपेक्षाओं पर निर्भर है। अगर हमारी अपेक्षाएँ पूरी नहीं होती हैं, तो हम दुखी हो जाते हैं। हमारा प्रेम ज्यादा समय तक पवित्र नहीं रहता क्योंकि यह हमारे अहंकार, मनोदशाओं, आदतों और कई अन्य चीजों से प्रदूषित हो जाता है। इसलिए मानवीय प्रेम में खुशी अस्थायी है और अकसर हमारे दुःख का कारण बन जाती है।

फिर हमें सच्चा प्यार कैसे मिल सकता है?

इसके लिए हमें अपने माता-पिता का हमारे प्रति प्रेम के बारे में सोचना चाहिए। हमारे प्रति उनका प्यार उपेक्षाओं के परे है। उन्हें सिर्फ हमें प्यार करने और हमारी देखभाल करने में खुशी मिलती है। ईश्वरीय प्रेम को समझने के लिए यह एक अच्छा उदाहरण है। एक और उदाहरण से हम ईश्वरीय प्रेम को समझ सकते है और वह है धरती माँ द्वारा प्रदर्शित प्रेम। धरती माँ हमें सब कुछ देती है पर बदले में हमसे कुछ भी उम्मीद नहीं रखती हैं। वे अपनी उदारता को जाति, रंग, धर्म या पंथ के आधार पर वितरित नहीं करती। वे सभी को देती हैं।

यह अप्रतिबन्धदित प्रेम ही ईश्वरीय प्रेम है। यह असीमित है क्योंकि यह अपेक्षा उन्मुख नहीं है।

हमारे भीतर ईश्वरीय प्रेम की शक्ति की जागृति से, हम सब से प्रेम करने और उनकी देखभाल करने में ही आनंद प्राप्त करने लगते हैं। ईश्वरीय प्रेम की शक्ति इतनी महान हैं कि जब वह हमारे भीतर जागृत जाती है तो हमारा ह्रदय उदार हो जाता है और बिना किसी आकांक्षा के हम दूसरों से प्यार करने लगते हैं और इसमें ही हमें आनंद मिलने लगता है। जब हम प्रेममय हो जाते हैं, तो हम करुणामय, सत्यप्रिय, सहनशील, क्षमाशील और परोपकारी भी हो जाते हैं। तब हम अपने जीवन में सच्चा प्यार और स्थायी आनंद अनुभव करते हैं।

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